हुज़ूर फ़ारूक़ ए आज़म हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ी अल्लाहु त'आला अन्हु || Hazrat Umar Farooque Radiyallahu Ta'ala Anhu




खिलाफत फ़ारूक़ ए आज़म रज़ी अल्लाहु त'आला अन्हु का इंकार करने वाला भी सही क़ौल पर काफ़िर है।

खलीफा-ए-सानी, क़ाएद-ए-इसलाम, मुराद-ए-रसूल ﷺ, खुसर-ए-रसूल ﷺ, मुत्तम-ए-अर्बाइन, फ़ारूक़-ए-आज़म, आदिल अल-सहाब, मुज़यन अल-मिंबर वाल-महराब, अज़-ए-इसलाम वल-मुसलमीन, इमाम अल-अशजाईन, ग़ैज़ अल-मुनाफ़िकीन, इमाम अल-मुजाहिदीन, अमीर अल-मुमिनीन, हज़रत सैयदना व मौलाना इमाम अबू हफ्स उमर बिन अल-खत्ताब अल-अदवी अल-कुरैशी रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु व अर्दाह का मुबारक जन्म आम अल-फील के लगभग 13 साल बाद, लगभग 583 ईस्वी में मक्का मुअज़्ज़मा में हुआ था। आप हज़रत सिद्दीके अकबर रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु के बाद तमाम सहाबा कराम अन्हुम से अफज़ल हैं। आपका शजर-ए-नसब आठवीं पीढ़ी में हज़ूर-ए-अकरम ﷺ के शजर-ए-नसब से मिल जाता है। आप अशराफ-ए-कुरैश में अपनी जाती और खांदानी वजाहत के लिहाज़ से बहुत ही मुमताज़ थे।

हज़ूर ख़ातमुल मुरसलीन ﷺ ने दुआ फ़रमाई, "ऐ अल्लाह! इस्लाम को खास उमर बिन अल-खत्ताब के जरिए ग़ल्बा व क़ूवत अता फ़रमा।" हज़ूर ﷺ की दुआ की बरकत से ऐलान-ए-नुबुव्वत के छठे साल उन्तालीस (39) लोगों के बाद ईमान लाए (आप चालीसवें मुसलमान हैं)। आपके ईमान लाने से मुसलमानों को बेहत खुशी हुई और उनको क़ूवत मिल गई। आप फ़रमाते हैं, "जब मैंने इस्लाम क़बूल किया तो दार अरकम में मौजूद मुसलमानों ने इतने जोर से तकबीर बुलंद की कि उसे तमाम अहले मक्का ने सुना।" आपके इस्लाम क़बूल करने के बाद हज़ूर ﷺ ने सहाबा-ए-किराम के साथ हरम में नमाज़ अदा फ़रमाई। हज़रत इब्न अब्बास रज़ी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्होंने फ़रमाया, "जिसने अपना इस्लाम सबसे पहले अला-ऐलान ज़ाहिर किया, वो हज़रत उमर हैं।" हज़रत सुहैब रज़ी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्होंने फ़रमाया, "जब हज़रत उमर ईमान लाए तो इस्लाम ज़ाहिर हुआ। उससे पहले लोग अपना इस्लाम ज़ाहिर नहीं करते थे। उनके ईमान लाने के बाद लोगों को खुल्लम-खुल्ला इस्लाम की तरफ बुलाया जाने लगा। हम बेतुल्लाह शरीफ के करीब मजलिसें कायम करने, उसका अलानी तवाफ़ करने, काफिरों से बदला लेने और उनका जवाब देने के काबिल हो गए।"

उसके बाद हज़ूर सरवर-ए-आलम ﷺ की तमाम इस्लामी तहरीकात और सुलह-ओ-जंग वगैरह की तमाम मंसूबा बंदियों में वज़ीर-ओ-मशीर की हैसियत से वफादार व रफ़ीक-ए-कार रहे और तमाम गज़वात में साबित क़दम रहे। सैयदना फ़ारूक़-ए-आज़म के सिवा किसी ने भी अलानी हिजरत नहीं की। जब आपने हिजरत का इरादा फ़रमाया तो तलवार ली, कंधे पर तीर लटकाया, तीरों का तरकश हाथ में लेकर हरम रवाना हुए। काबा-ए-मुशर्रफ के सहन में कुरैश का एक समूह मौजूद था। आपने इत्मीनान से तवाफ किया और नमाज़ पढ़ी। फिर फ़रमाया, "ऐ समूह-ए-कुफ्फ़ार! जिसको अपनी माँ को नौहा करने वाली, बीवी को विधवा और बच्चों को यतीम करना हो, तो वो इस पहाड़ के पीछे (हरम से बाहर) आकर मुझसे मुकाबला कर सकता है।"

सैयदना सिद्दीके अकबर ने अपने बाद हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु को खलीफ़ा और अपना जानशीं मुंतख़ब फ़रमाया। हज़रत सिद्दीके अकबर रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु के बाद उनके नक़्श-ए-कदम पर चलते हुए आपने तख़्त-ए-ख़िलाफ़त पर रौनक अफ़रोज़ होकर जानशिनी-ए-मुस्तफ़ा ﷺ की तमाम ज़िम्मेदारियों को ब-तरीक़े अहसन सर अंजाम दिया।

आपकी ख़िलाफ़त तक़रीबन 10 साल 6 महीने और 4 रोज़ रही। सैयदना उमर रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु ही वो पहले खलीफा हैं जिन्हें अमीरुल मुमिनीन से मूसूम किया गया। आप ही ने सबसे पहले घोड़ों पर ज़कात वसूल फ़रमाई।. ---

जब ख़िलाफ़त हज़रत फ़ारूक़-ए-आज़म को सौंपी गई, तो आपने राजनीति को इस तरह बेहतरीन अंदाज में निभाया कि किसी ग़ैर-नबी से ऐसा मुमकिन न था। अगर अक़्ल-ए-सलीम को उमूर-ए-ख़िलाफ़त बरोए कार लाया जाए, तो महसूस होगा कि अंबिया की ख़िलाफ़त का काम उनसे बेहतर निभाया नहीं जा सकता क्योंकि नबी अक़रम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जिन दो मामलात की तरफ़ बहुत ही ज्यादा तवज्जो देते थे, उनमें से एक तालीम-ए-इल्म है और फ़ारूक़-ए-आज़म (रज़ी अल्लाहु तआला अन्ह) ने मसाइल में खोद-करीद करके और निहायत ही मेहनत व कोशिश के साथ किताब व सुन्नत, इज्मा व क़ियास की तर्तीब को क़ायम फरमाकर तहरीफ़ के तमाम रास्ते बंद कर दिए। 

चुनांचे तमाम सहाबा ने इस बात की गवाही दी है कि वह अपने दौर में सबसे ज्यादा आलिम थे। और दूसरा मामला जिहाद का था। फ़ारूक़-ए-आज़म ने इस मामले को इस तरह निभाया कि इससे बेहतर तसव्वुर नहीं किया जा सकता। याफ़ई कहते हैं कि 14 हिजरी में दमिश्क़ फ़तह हो गया और "रौज़त-उल-अहबाब" में है कि फ़ारूक़-ए-आज़म के दौर में 1036 (एक हज़ार छत्तीस) शहर मआ मज़ाफ़ात फ़तह हुए, 4000 (चार हज़ार) मसाजिद की तामीर हुई, 4000 (चार हज़ार) कनिशे तबाह किए गए, और 1900 (एक हज़ार नौ सौ) मिम्बर तैयार हुए। आप ही ने सबसे पहले घोड़ों पर ज़कात वसूल फ़रमाई।

आप ही ने सन-ए-हिजरी को जारी फ़रमाया। आप ही ने माह-ए-रमज़ान में नमाज़-ए-तरावीह को जमाअत के साथ बाक़ायदा क़ायम फ़रमाया। आप ही ने लोगों की ख़बरगिरी के लिए रातों को गश्त फ़रमाया। आप ही ने शराबी को अस्सी (80) कोड़े लगवाए। आप ही ने सबसे पहले दफ्तर क़ायम किए। आप ही ने बाक़ायदा शहरों में क़ाज़ी मुक़र्रर किए। आप ही ने मक़ाम-ए-इब्राहीम को उस जगह क़ायम किया जहां वो आज है। आप ही ने कूफ़ा, बसरा, जज़ीरा, मूसल के शहर आबाद कराए। आप ही ने मस्जिद-ए-नबवी की तौसीअ की और इसमें टाट का फ़र्श बिछाया। आप ही ने मस्जिदों में क़ंदीलें रोशन कराईं। आप ही ने अशर-ओ-ख़राज का निज़ाम नाफ़िज किया और जेल खाने वज़ा किए।

हज़रत ख़ज़ीमा बिन साबित रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि वो फ़रमाते हैं कि जब सैयदना फ़ारूक़-ए-आज़म किसी को गवर्नर मुक़र्रर करते तो उससे चंद शराइत लिखवा लेते कि वो आला घोड़े पर सवार नहीं होगा, बारीक कपड़े नहीं पहनेगा, छना हुआ आटा नहीं खाएगा, ज़रूरतमंदों के लिए अपने दरवाज़े बंद नहीं करेगा और दरबान नहीं रखेगा। फिर जो शख्स इन शराइत की पाबंदी नहीं करता था, उसके साथ निहायत सख़्ती से पेश आते थे।

मन्सब-ए-खिलाफ़त संभालने के बाद सैयदना उमर फ़ारूक़ रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु ने अपने पहले ख़िताब में फ़रमाया, "ऐ लोगो! मुझे तुमसे आजमाया जा रहा है और तुम्हें मुझसे। मैं अपने दोनों पेशरवों (रसूल अल्लाह ﷺ और हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु) के बाद तुम में जानशीन बन रहा हूँ। जो चीज़ हमारे सामने (मदीना में) होगी, उसे हम ख़ुद अंजाम देंगे और जो चीज़ ग़ायब (दूसरी जगह) होगी, तो उसके लिए क़वी-ओ-अमीन लोगों को मामूर करेंगे। जो अच्छा काम करेगा, उस पर एहसान भी ज़्यादा होगा और जो बुरा काम करेगा, उसे सज़ा दी जाएगी।" फिर अपने मुक़र्रर किए गए अमल और गवर्नरों से मुख़ातिब होकर फ़रमाया, "याद रखो! मैंने तुम्हें लोगों पर ज़ुल्म-ओ-जबर करने वाला बनाकर नहीं भेजा कि तुम लोगों पर सख़्ती करो, बल्कि मैंने तुम्हें लोगों का इमाम बनाकर भेजा है ताकि लोग तुम्हारी इत्तिबा करें। इसलिए तुम पर लाज़िम है कि लोगों के हुक़ूक़ अदा करो, उनको ज़द-ओ-कूब न करो कि उनकी इज़्ज़त-ए-नफ़्स मजरूह हो जाए और न उनकी बेजा तारीफ़ करो कि वो ग़लतफहमी में मुबतला हो जाएं। 

उन पर अपने दरवाजे बंद न करो कि ताकतवर कमजोरों को खा जाएँ और उन पर अपने आप को किसी बात में प्राथमिकता न दो कि यह अन्याय करने के समान है। फ़ारूक़ ए आज़म रज़ी अल्लाहु अन्ह की ज़ुबान ए अक़दस पर अक्सर अल्लाह अकबर जारी रहता था। आप रज़ी अल्लाहु अन्ह मदीना मुनव्वरा के बच्चों से अपने लिए दुआ कराते थे कि दुआ करो उमर बख़्शा जाए। आपके ही दौर में मुसलमानों को सबसे ज़्यादा फतूहात हासिल हुईं। आपने सिवाय अपनी ख़िलाफ़त के पहले साल (१३ हिज्री) के अपने ज़माना ए ख़िलाफ़त में हर साल हज फ़रमाया, जिस साल आप शहीद हुए उस साल भी आपने हज फ़रमाया था।

एक बार मदीना मुनव्वरा में ज़लज़ला आ गया और ज़मीन ज़ोरों के साथ कांपने लगी। अमीर उल मोमिनीन सैयदना उमर रज़ी अल्लाहु अन्ह ने जलाल में ज़मीन पर एक दर्रा मारा और बुलंद आवाज़ से फ़रमाया "ऐ ज़मीन ठहर जा, क्या मैंने तेरे ऊपर अदल नहीं किया!" आपका यह फ़रमान सुनते ही ज़मीन साकिन हो गई और ज़लज़ला खत्म हो गया। सैयदना फ़ारूक़ ए आज़म रज़ी अल्लाहु अन्ह की रवायत की हुई हदीसों की संख्या 537 है। हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ी अल्लाहु अन्ह अल्लाह के ख़ौफ़ से इतना रोते थे कि उनके चेहरा ए मुबारक पर बहुत रोने की वजह से दो काले निशान थे। सैयदना उमर फ़ारूक़ रज़ी अल्लाहु अन्ह ने अपनी उम्र के आख़री दो सालों में लगातार रोज़े रखना शुरू कर दिए थे।

सैयदना फ़ारूक़ ए आज़म रज़ी अल्लाहु अन्ह दुआ फ़रमाया करते थे कि "ऐ अल्लाह मुझे अपनी राह में शहादत और अपने रसूल ﷺ के शहर में मौत नसीब फ़रमा।" आपकी दुआ इस तरह पूरी हुई कि 26 ज़ुल हिज्जा अल हराम 23 हिज्री, बुधवार के दिन आप नमाज़ फ़ज्र के लिए मस्जिदे नबवी में तशरीफ़ लाए। आपने फ़रमाया "सफ़ें सीधी कर लो" (यह आपकी आदत करीमा थी) जब अबू लुलू (मजूसि ग़ुलाम) ने आपकी आवाज़ सुनी तो आपके बिल्कुल करीब आकर खड़ा हो गया। जैसे ही आपने तकबीर ए तहरीमा कही, उसने आप पर ख़ंजर से हमला कर दिया। कंधे और पहलू पर वार किए जिससे आप गिर गए। उसके बाद उसने तेरह नमाज़ियों को ज़ख्मी किया जिनमें से छह शहीद हो गए। उस समय जब वह लोगों को ज़ख्मी कर रहा था, एक इराकी मुसलमान ने उस पर अपनी चादर डाल दी। जब उसे यकीन हो गया कि पकड़ा जाऊंगा तो उसने खुदकुशी कर ली।

सैयदना उमर रज़ी अल्लाहु अन्ह ने हज़रत अब्दुल रहमान बिन औफ रज़ी अल्लाहु अन्ह का हाथ पकड़कर उनको नमाज़ के लिए आगे बढ़ा दिया। उन्होंने दो मुख़्तसर सूरतों के साथ नमाज़ पढ़ाई। फिर हज़रत उमर रज़ी अल्लाहु अन्ह को उनके घर ले जाया गया। आपने दरियाफ़्त किया, "ऐ इब्न अब्बास, मुझ पर किसने हमला किया?" उन्होंने अर्ज़ किया कि "मुग़ीरा बिन शुबा रज़ी अल्लाहु अन्ह के ग़ुलाम ने।" आपने फ़रमाया, "तमाम तारीफें उस अल्लाह के लिए हैं जिसने मेरी मौत किसी ऐसे शख्स के हाथ न की जो इस्लाम का दावा करता हो।"

पहले आपको नबेज़ पिलाई गई जो ज़ख्मों के रास्ते बाहर निकल गई। फिर दूध पिलाया गया, वह भी ज़ख्मों से निकल गया। फिर आपने हज़रत उस्मान, हज़रत अली, हज़रत तल्हा, हज़रत ज़ुबैर, हज़रत अब्दुल रहमान बिन औफ, हज़रत साद बिन अबी वक़ास रज़ी अल्लाहु अन्हुम की इख्तियार ए खलीफा के लिए एक कमेटी बना दी और फ़रमाया कि इनमें से किसी को खलीफा मुक़र्रर किया जाए। फिर अपने साहिबज़ादे हज़रत अब्दुल्लाह रज़ी अल्लाहु अन्ह से फ़रमाया "मुझ पर कितना कर्ज है?" उन्होंने हिसाब करके बताया कि "छियासी हजार (86000) दिरहम कर्ज है।" फ़रमाया, "यह कर्ज़ आले उमर के माल से अदा कर देना। अगर उससे अदा न हो तो बनू अदी से मांगना और अगर उससे भी अदा न हो तो क़ुरैश से लेना और उनके अलावा किसी से न लेना।"

फिर फ़रमाया, "सय्यदा आइशा के पास जाओ, उनसे कहो कि उमर आपको सलाम कहते हैं और अपने दोनों दोस्तों के पास दफ़्न होने की इजाज़त चाहते हैं।" हज़रत अब्दुल्लाह उम्मुल मोमिनीन आइशा सिद्दीक़ा रज़ी अल्लाहु अन्हा के पास गए, सलाम अर्ज़ किया और अपने वालिद की ख्वाहिश को जाहिर किया। उम्मुल मोमिनीन ने फ़रमाया, "यह जगह तो मैंने अपने लिए महफूज़ कर रखी थी, मगर मैं आज अपनी ज़ात पर (सैयदना) उमर को तर्जीह देती हूँ।" जब हज़रत फ़ारूक़ ए आज़म को यह ख़बर मिली, तो आपने खुदा का शुक्र अदा किया और फ़रमाया, "यह मेरे नज़दीक सबसे अहम है।" फिर फ़रमाया, "जब मैं वफ़ात पा जाऊं, तो मुझे उम्मुल मोमिनीन के पास ले जाना, सलाम करना और एक बार फिर तदफ़ीन की इजाज़त तलब करना। अगर दे दें तो मुझे अंदर दाखिल करना, वरना क़ब्रिस्तान में दफ़्न कर देना।"

२६ ज़ुल हिज्जा बुधवार के दिन आप शदीद ज़ख़्मी हुए और तीन दिन के बाद 63 बरस की उम्र में जाम ए शहादत नोश फ़रमाया। आपके साहिबज़ादे हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ी अल्लाहु अन्हुमा ने ग़ुस्ल दिया और कफ़नाया। आपके जिस्म ए अतहर को हुज़ूर अक़दस ﷺ की चारपाई पर रखा गया और हज़रत सुहैब बिन सिनान अर-रूमी रज़ी अल्लाहु अन्हु व अरज़ाह ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई। 

१ मुहर्रम अल हराम 24 हिज्री, रविवार के दिन रोज़ा ए रसूल ﷺ में प्यारे आका व मौला ﷺ और सैयदना सिद्दीक़ ए अकबर रज़ी अल्लाहु तआला अन्ह के पहलू ए अनवर में आराम फ़रमा हुए। क़ब्र में आपको आपके साहिबज़ादे हज़रत अब्दुल्लाह, हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान, हज़रत अब्दुल रहमान बिन औफ़, हज़रत सईद बिन ज़ैद और हज़रत सुहैब रज़ी अल्लाहु अन्हुम ने उतारा।

हुज़ूर अक़दस ﷺ ने इरशाद फ़रमाया, "अगर मेरे बाद कोई नबी होता, तो वह ज़रूर उमर बिन खत्ताब होते" और फ़रमाया "बेशक अल्लाह ने उमर की ज़ुबान व क़ल्ब पर हक़ को जारी फ़रमाया है" और फ़रमाया "मैं देख रहा हूँ कि जिन व शैतान उमर के ख़ौफ़ से भागते हैं" और फ़रमाया "ऐ इब्न खत्ताब, क़सम है उस ज़ात की जिसके क़ब्ज़ा ए क़ुदरत में मेरी जान है, शैतान तुम्हें किसी रास्ते पर चलता हुआ देखता है तो वह तुम्हारा रास्ता छोड़कर दूसरा रास्ता इख़्तियार कर लेता है" और फ़रमाया "उमर मुझसे है और मैं उमर से हूँ और उमर जिस जगह भी होता है, हक़ उसके साथ होता है" और फ़रमाया "मेरे बाद अबू बकर व उमर की पैरवी करना" और फ़रमाया "अबू बकर व उमर अंबिया व मर्सलिन (अलैहिमुस्सलाम) के अलावा, अव्वलिन और आखिरिन जन्नती दरमियानी  उम्र के सरदार हैं।
 
हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ी अल्लाहु अन्ह से रिवायत है कि रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया, "जिस शख्स ने उमर से दुश्मनी रखी, उसने मुझसे दुश्मनी रखी, और जिसने उमर से मोहब्बत की, उसने मुझसे मोहब्बत की।" और अल्लाह तआला ने अरफा वालों पर आम तौर पर और उमर पर खास तौर पर फख्र और मुबाहात की है। जितने अंबिया दुनिया में मबऊस हुए, सबकी उम्मत में एक मुहद्दिस ज़रूर होता है। और अगर मेरी उम्मत में कोई मुहद्दिस है, तो वह उमर हैं। सहाबा ए किराम रज़वान अल्लाह अलैहिम अजमईन ने अर्ज़ की, "मुहद्दिस कौन होता है?" हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया, "जिसकी ज़ुबान से मलक (फरिश्ते) बात करें, वह मुहद्दिस होता है।"

हज़रत सहल बिन सअद रज़ी अल्लाहु तआला अन्ह से मर्वी है कि एक दिन नबी करीम ﷺ हज़रत अबू बक्र, उमर और उस्मान रज़ी अल्लाहु अन्हुम के साथ उहुद पहाड़ पर थे, यकायक वह हिलने लगा तो हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया, "ऐ उहुद, ठहर जा, तुझ पर नहीं हैं मगर एक नबी, एक सिद्दीक़ और दो शहीद।" हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ी अल्लाहु अन्ह से रिवायत है कि हुज़ूर अक़दस ﷺ ने फ़रमाया, "मैं सो रहा था, तो ख्वाब देखा कि लोग मेरे सामने पेश किए जा रहे हैं और मुझको दिखाए जा रहे हैं। वे सब कुर्ते पहने हुए थे, जिनमें से कुछ लोगों के कुर्ते सिर्फ सीने तक थे और कुछ के उससे नीचे तक। फिर उमर बिन खत्ताब को पेश किया गया, जो इतना लंबा कुर्ता पहने हुए थे कि ज़मीन पर घसीटते हुए चल रहे थे। लोगों ने अर्ज़ किया, "या रसूल अल्लाह ﷺ, इस ख्वाब की ताबीर क्या है?" हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया, "दीन।"

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ी अल्लाहु अन्ह से रिवायत है, वह फ़रमाते हैं कि हज़रत उमर का मुसलमान होना इस्लाम की फतह थी, उनकी हिजरत अल्लाह की नस्रत थी, और उनकी ख़िलाफ़त रहमत ए खुदावंदी थी। हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ी अल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि अगर किसी मामले में लोगों की राय दूसरी होती और हज़रत उमर की राय दूसरी, तो कुरआन मजीद हज़रत उमर रज़ी अल्लाहु अन्ह की राय के मुताबिक नाज़िल होता था। हज़रत मुजाहिद रहमतुल्लाह अलैह से मर्वी है कि हज़रत उमर रज़ी अल्लाहु अन्ह किसी मामले में जो कुछ मशवरा देते थे, कुरआन शरीफ की आयतें उसी के मुताबिक नाज़िल होती थीं।

हज़रत इब्न मसऊद रज़ी अल्लाहु अन्ह फ़रमाते हैं कि हज़रत उमर रज़ी अल्लाहु अन्ह की फज़ीलत चार बातों से ज़ाहिर है:  
बदर के क़ैदियों के सिलसिले में आयत मुबारका नाज़िल हुई, जिससे फ़ारूक़ ए आज़म रज़ी अल्लाहु अन्ह की राय की ताइद की गई। आपने अज़वाजे मुतह्हरात रज़ी अल्लाहु अन्हुमा के पर्दे के मुताल्लिक अपनी राय का इज़हार किया, जिस पर आयत नाज़िल हुई और आपकी राय की ताइद फ़रमाई गई। हुज़ूर ﷺ ने आपके मुताल्लिक दुआ फ़रमाई, "ऐ अल्लाह, उमर को मुसलमान बनाकर इस्लाम को ग़ल्बा अता फ़रमा।" और आपने सबसे पहले सिद्दीक़ ए अकबर रज़ी अल्लाहु अन्ह की बैअत की।

हज़रत मुआविया रज़ी अल्लाहु अन्ह फ़रमाते हैं कि हज़रत अबू बक्र रज़ी अल्लाहु अन्ह के पास दुनिया नहीं आई, न उन्होंने इसकी तमन्ना की, मगर हज़रत उमर के पास दुनिया बहुत आई, लेकिन उन्होंने उसको क़बूल न किया, बल्कि ठुकरा दिया। 

(सहीह अल बुख़ारी, जामे अल तिर्मिज़ी, असद अल ग़ाबा, तबक़ात इब्न सअद, तारीख़ अल ख़ुलफ़ा, मुवत्ता इमाम मालिक, अल मुअज्जम अल औसत, मदारिज़ अल नुबूवा)

वह उमर, जिसके अदाअ पे शीदा सकर
उस खुदा दोस्त हज़रत पे लाखों सलाम

फारिक़ हक़ व बातिल, इमाम ए हुदा
तीग़ मस्लूल ए शिद्दत पे लाखों सलाम

तरजुमान ए नबी, हमज़ुबान ए नबी
जान ए शान ए अदालत पे लाखों सलाम

मरत्तिब: शहज़ादा व जानशीन हज़रत क़ायद ए मिल्लत काज़ी उल कज़ात फी अल हिंद अल्लामा क़राफी हुसाम अहमद रज़ा खान कादरी, अल मारूफ (हुसाम मियां)

नाशिर: जमात रज़ाए मुस्तफ़ा नागपुर, आपके ईमान व अक़ीदह की मोहाफिज़

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