यासीन नाम रखने का शरई हुक्म (Yaseen Naam Rakhne Ka Sharai Hukm)
" ' यासीन' नाम रखने का शरई हुक्म"
आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह तआला अलैह ने *"यासीन" नाम रखने का जो शरई हुक्म बयान फ़रमाया इसका खुलासा ये है कि किसी का "यासीन" और "ताहा" नाम रखना मना है क्योंके बकौले बाज़ ओलमा मुमकिन है के ये दोनों अल्लाह तआला के ऐसे नाम है जिनके माअना मालूम नहीं, क्या अज़ब के इनके वो माअना हो जो गैरे खुदा पर सादिक़ न आ सकें, इसलिए इनसे बचना लाज़िम है और "आलाहज़रत" के बकौल ये "नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम" के ऐसे नाम है जिनके माअने से वाकिफ नहीं, हो सकता है इनका ऐसा कोई माअना हो जो "हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम" के लिए खास हो और आपके सिवा दूसरे के लिए ये दुरस्त न हो। इन नामों की "आलाहज़रत" की बयान कर्दा राय ज्यादा मुनासिब है क्योंके इन नामों का "हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम" के लिए मुकद्दस नाम के तौर पर होना ज्यादा ज़ाहिर और मशहूर हैं।"
(फतावा रज़वीया, रिसाला : अन नूर व ज़िया फि अहकाम बाज़ उल अस्मा, 24/680-681)
_"नोट: जिन हज़रात का नाम "यासीन" है वो खुद को "गुलाम यासीन" लिखे और लोगो को भी कहे कि मुझे "गुलाम यासीन" कहकर बुलाया करें।
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