जानिए क़व्वाली हराम है या हलाल ? आलाहज़रत ने भी क़व्वाली को ....?
QAWWALI SUNNA HARAM HAI YA HALAL:
Imam Ahmed Raza Khan Sahab Ne Apni Kitabo'n Me Kai Jagah Likha Hai Ki Mazamir Ke Sath Qawwaliya Haram Hai. Isme Qawwali Gaane Vala, Sunne Vala aur Orgnizer (Qawwali karvane Vala) tamami log Gunahgar Hoge.
सबसे पहले हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने क्या फ़रमाया वो देखते है:
➤ हदीसे पाक में है हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि ज़रूर मेरी उम्मत में ऐसे लोग होने वाले हैं जो ज़िना,रेशमी कपड़ों,शराब और बाजों ताशों को हलाल ठहरायेंगे.
📕 बुखारी शरीफ,जिल्द 2,सफह 837
➤ दूसरी जगह आप सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि अल्लाह अज़्ज़वजल ने मुझको ढ़ोल ताशों और बांसुरियों को मिटाने का हुकम दिया.
📕 मिश्क़ात शरीफ,बाबुल इमारत
👉जानिए क़व्वाली पर आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा साहब का फतवा
👉नात ए पाक पढ़ना और सुनना जायज़ है।
👉जानिए क़व्वाली पर हज़रत औरंगजेब अलैहिर्रहमा का फतवा
👉जानिए क़व्वाली पर हज़रत निजामुद्दीन औलिया का फतवा
*अब हुज़ूर का क़ौल देख लीजिए और आज कल जो आस्तानों पर समअ़ के नाम पर ढ़ोल, ताशे, हारमोनियम, पियानो, नगाड़े, बांसुरी और रुबाब इस्तेमाल किये जाते हैं उनको देख लीजिए, और बाज़ बेबाक़ तो यहां तक कहते हैं कि सिलसिलए चिश्तिया में कव्वाली मज़ामीर के साथ ही होती थी हालांकि वो सरासर झूठे हैं और ये मशाइखे चिश्त पर उनका बोहताने अज़ीम है, जैसा कि सिर्रूल औलिया में मज़कूर है कि*
➤हुज़ूर महबूबे इलाही रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु की मजलिस में मज़ामीर न होता था और ना ही ताली बजायी जाती थी और अगर कोई शख्स खबर करता कि फलां शख्स मज़ामीर के साथ कव्वाली सुनते हैं तो आप फरमाते कि अच्छा नहीं करते.
📕 तारीख़ुल औलिया,सफह 152
➤ खुद महबूबे इलाही रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मज़ामीर हराम अस्त यानी म्यूज़िक हराम है
📕 फुवादुल फुवाद शरीफ,जिल्द 3,सफह 512
और जब उस ज़माने में समअ के साथ मज़ामीर के इस्तेमाल पर गुलु बढ़ गया तो आपके खलीफा सय्यदना फ़खरुद्दीन ज़रदारी ने अपने पीरो मुर्शिद के हुक्म से एक किताब लिखी जिसमें आप फरमाते हैं कि*
➤ हमारे बुजुर्गों का समअ इस मज़ामीर के बोहतान से बरी है कि उनका समअ सिर्फ कव्वाल की आवाज़ पर होता था
📕 अहकामे शरीयत,हिस्सा 1,सफह 63
और समअ के हलाल होने के मुताल्लिक़ हुज़ूर महबूबे इलाही रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते हैं कि*
➤कुछ शर्तों के साथ समअ हलाल है :
! महफ़िल में कोई भी अमरद यानि दाढ़ी मुन्डा ना हो
! महफ़िल में कोई औरत मौजूद ना हो
! पूरी जमात अहल की हो यानी कोई भी यादे खुदा से ग़ाफिल ना हो
! जो कलाम पढ़ा जाए वो बे शरह व बेहुदा ना हो
! समअ मज़ामीर यानि सारंगी व रुबाब से पाक हो
📕 सिर्रूल औलिया,बाब 9,सफह 501
*और आज के मक्कार समअ खोर ये रिवायत भी आंख खोल कर पढ़ें*
➤एक शख्स ने हज़रत महबूबे इलाही रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु को खबर दी कि फलां जगह मज़ामीर के साथ समअ हुआ उसमें कुछ दरवेश भी शामिल थे उनको जब मना किया गया तो कहते हैं कि हमको तो मालूम भी ना हुआ हम तो समअ में डूबे हुए थे इस पर सुल्तानुल मशायख फरमाते हैं कि ये तो कोई जवाब ना हुआ इस तरह तो हर गुनाह करने वाला गुनाह करने के बाद कह देगा कि मुझको खबर ही ना हुई
📕 सिर्रूल औलिया,बाब 9,सफह 530
*देखिये कितना साफ़ शफ़्फ़ाफ़ इरशाद है कि इस तरह तो ज़िना करने वाला कह देगा कि मुझको खबर ही ना हुई कि बीवी थी या ग़ैर औरत,शराब पीने वाला कह देगा कि मुझको पता ही नहीं चला कि शराब थी या शरबत,सिलसिलए चिश्त को अपनी हरामकारियों की ढाल बनाने वालों क्या तुम्हारा इलज़ाम खुद अपने ही मशायख पर नहीं है,याद रहे कि इस ज़माने में जो कव्वाली रायज है उसका कहीं से कोई सुबूत नहीं है,और आलाहज़रत के नाम से ही जलने मरने वालों मेरे आलाहज़रत के ज़माने मुबारक से तक़रीबन 250 साल पहले लिखी गयी फ़तावा आलमगीरी में है कि
➤ समअ यानि कव्वाली और रक्स जो आज कल के नाम निहाद सूफ़ियों में रायज है ये हराम है,इसमें शिरकत जायज़ नहीं
📕 फतावा आलमगीरी,जिल्द 5,सफह 352
*खुलासये कलाम - क्या हदीसे मुबारका व बुज़ुर्गाने दीन के अक़वाल के बाद भी कोई सुबूत देना बाकी रह गया है,अगर इन आफ़ताब रौशन दलीलों के होते हुए भी कोई इसका इन्कार करे तो यक़ीनन वो नफ़्स परस्त है उसके किसी भी अमल का दीन से कोई लेना देना नहीं है,मौला तआला से दुआ है कि तमाम बहके हुए मुसलमानो को हिदायत अता फरमाये और हम सबको मसलके आलाहज़रत पर सख्ती से क़ायम रहने की तौफीक़ अता फरमाए-आमीन*
Masha'Allah
ReplyDeleteहमलोग बरेलवी नही है, हमलोग ख़्वाजा वाले है, सुन्नी है, हम लोग 5 मसलक को नही मानते, हमारा मसलक हंफी है, जो ख़्वाजा का नही वो हमारा नही,
ReplyDeleteKhwaja Garib Nawaz Vale Hote To Haram Kaam nahi Karte.....A
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