हज़रत ख़ालिद बिन वलीद रजियल्लाहु अन्हु || HAZRAT KHALID BIN WALID


हज़रत ख़ालिद बिन वलीद (रजियल्लाहु अन्हु) ऐसे सिपहसालार थे ,
जिन्होने सल्तनत ए इस्लामियाँ को शाम और रोम तक फैला दिया था।
फौज से निकलने के बाद आप चुप रहने लगे थे।
आप पहले मदीना मुनव्वरा गये फिर वहाँ से कन्सरीन चले गये और वहाँ से हमस।
642 ई0 (21 हि0) में ख़ालिद (रजियल्लाहु अन्हु) को बीमारी ने घेर लिया •
उन का जिस्म घुलता चला गया।
एक रोज़ एक दोस्त उन्हें देखने आया।
"गौर से देख" !" - ख़ालिद (रजियल्लाहु अन्हु) ने उसे अपना जिस्म दिखाया,
"क्या तुझे मेरे जिस्म पर कोई ऐसी जगह नज़र आती है जहाँ ज़ख्म का निशान न हो" ?
दोस्त को ऐसी कोई जगह नज़र न आयी जहाँ ज़ख्म न था।
"क्या तू नहीं जानता कि मैनें कितनी जंगें लड़ी हैं?" - ख़ालिद (रजियल्लाहु अन्हु) ने कहा " फिर मैं शहीद क्यों न हुआ?
मैं लड़ते हुए क्यों न मरा ?
" तू मैदाने जंग में नहीं मर सकता था अबू सुलेमान ! " -दोस्त ने कहा- " तुझे रसूल अल्लाह ﷺ ने अल्लाह की तलवार कहा था।
ये रसूले अकरम ﷺ की पेशनगोई थी के तू मैदाने जंग में नही मारा जायेगा,अगर तू मारा जाता तो सब कहते कि एक काफिर ने इस्लाम की तलवार तोड़ दी है।
ऐसा हो नहीं सकता था...तू इस्लाम की " शमशीर बे नियाम " था ।
वफात के वक़्त ख़ालिद (रजियल्लाहु अन्हु) की उम्र 58 साल थी।
उन की वफात की ख़बर मदीना पहुँची तो बनी मख़्ज़ूम की औरतें बीन करती गलियों में निकल आईं और रोने लगीं।
अमीरूल-मोमेनीन हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने ख़िलाफत की मसनद पर बैठते ही हुक्म जारी किया था कि किसी की वफात पर गिरया व ज़ारी नहीं की जायेगी,उन के इस हुक्म पर सख़्ती से अमल होता रहा था।
मगर ख़ालिद रजियल्लाहु अन्हु की वफात पर औरतें घरों से बाहर आकर बीन कर रहीं थीं।
हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने अपने घर में बैठे ये आवाज़ें सुनी तो वो ग़ुस्से से उठे और दीवार से लटकता दुर्रा (कोढ़ा) ले कर तेज़ी से बाहर चले लेकिन दरवाज़े में रूक गये। कुछ देर सोच कर वापस आ गये और दुर्रा वहीं लटका दिया जहाँ से उठाया था।
" बनी मख़्ज़ूम की औरतों को रोने की इजाज़त है "- हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने एलान किया -"इन्हें अबु सुलेमान (ख़ालिद) का मातम कर लेने दो।
इन का रोना दिखावे का नहीं। रोने वाले ख़ालिद जैसों पर ही रोया करते हैं। "
हमस में बड़ा हसीन बाग़ है। फूलों के क्यारे हैं। दरम्यान में रास्ते हैं दरख़्त हैं।
इस बाग़ में एक मस्जिद है जो मस्जिद ख़ालिद बिन वलीद रजियल्लाहु अन्हु के नाम से मशहूर है। बहुत दिलकश मस्जिद है। इसी मस्जिद के एक कोने में ख़ालिद रजियल्लाहु अन्हु की क़ब्र मुबारक है।
हज़रत ख़ालिद रजियल्लाहु अन्हु की दास्तान ए शुजाअत जानने वालों को आज भी जैसे इस मस्जिद में जाकर लल्कार सुनाई देती है :
अना फारस उल जदीद
अना ख़ालिद बिन वलीद !

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